पल भर को ही सही
जुगनू ने तोड़ा तो
रात का अहम
रविवार, 2 मार्च 2008
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उफ ये बेचैनी
ये बेचैनी हमे जीने नही देगी और बेचैनी चली गई तो शायद हम ही ना जी पाये तेरे इश्क मे सुकून कभी मिला ही नही बे-आरामी मे रहने की ये आदत ...
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तेरी आँखो मे ऐसे डूबे है कि अब तक उबरे ही नही कुछ बीमारियां उमर भर की होती है फिक्र तो उस दिन की है जिस दिन ये जां जायेगी ये बीमारियां...
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जिस अखबार पर जलेबी रख के खिलाई थी तुमने वो टुकड़ा अब भी तुम्हारी उंगलियो की चाशनी से भीगा पड़ा है ना रद्दी मे बेच सकते है उसे ना उमर भ...
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वो जो मेरे हिस्से का आसमां तुमने चुरा लिया था उसे कुछ वक्त के लिये वापस चाहता हूं मै बहुत दिनो से चांद देखने की मेरी ख्वाहिश अधूरी है क...
2 टिप्पणियां:
अच्छी पंक्ति है...
वाह!!!
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