मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

गलतफहमी


दशहरे के दिन रावण को जलाकर
बुराई के खत्म होने की गलतफहमी
ई एम आई पर घर खरीदकर
उसके अपना होने की गलतफहमी
किसी के मुस्कुरा कर मिलने पर
उसके खुश होने की गलतफहमी
एक दिन बदलेगा देश
बदलेगी दुनिया
इस बात की गलतफहमी
वो देश को करा गये आज़ाद
क्योकि उनको भी थी गलतफहमी
उन्हे पता ना था
कि उनके आज़ाद देश मे
गर्भ में ही मरेंगी देवियां
नवरात्रि तो मनेगी
पर दहेज के लिये
रोज़ मरेंगी बेटियां
आज़ाद भारत
में भी बेकसूरो पर चलेगी
कसाब जैसो की गोलियां
वो भी जिये
आज़ादी दिलवाने की
गलतफहमी मे
हम भी जी रहे है
आज़ाद होने की
गलतफहमी में







शुक्रवार, 15 जून 2012

कब तक हो...

आफिस मे मुझे देर तक
बैठे देख किसी ने पूछा
कब तक हो
तो जवाब निकला
पता नही
पूछने वाला तो
ये सुनकर
चला गया
लेकिन मेरा ये जवाब
मेरे लिये ही एक सवाल छोड़ गया
कि वाकई कब तक हू मै
ये कैसे कहू मैं
क्योकि इसका मेरे पास
नही है कोई
जवाब
हर रोज सुबह उठकर
सोचना कि कैसा होगा मेरा
ये नया आज और दिल मे होता है
थोडा सा
बीते कल का एहसास
साथ ही होती है आने वाले कल से
थोडी सी आस
बस इसी इंतजार मे
चली रही है मेरी सांस
पर ये सवाल बड़ा गहरा है
कि कौन है वो जिसके पास
है इसका जवाब
जिसमे छिपा है मेरे जीवन का राज
अब जब कोई तुमसे पूछे कब तक हो
तो सोचना जरूर कि
कब तक के लिये उसने बांधी है तुम्हारी डोर
ना जाने कब, कंहा किस मोड़ पर
खिचंने वाली है ये डोर
क्योकि कब तक हो तुम
इसका जवाब तो नही है
किसी के पास



उफ ये बेचैनी

ये बेचैनी हमे जीने नही देगी और बेचैनी चली गई तो शायद हम ही ना जी पाये तेरे इश्क मे सुकून कभी मिला ही नही बे-आरामी मे रहने की ये आदत ...