अब तो याद ही नही है
कि कैसे जीते थे हम
कुछ आदते ये ही भुला देती है
कि उनके बिना लगता कैसा था।
कि कैसे जीते थे हम
कुछ आदते ये ही भुला देती है
कि उनके बिना लगता कैसा था।
ये बेचैनी हमे जीने नही देगी और बेचैनी चली गई तो शायद हम ही ना जी पाये तेरे इश्क मे सुकून कभी मिला ही नही बे-आरामी मे रहने की ये आदत ...
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