शुक्रवार, 15 जून 2012

कब तक हो...

आफिस मे मुझे देर तक
बैठे देख किसी ने पूछा
कब तक हो
तो जवाब निकला
पता नही
पूछने वाला तो
ये सुनकर
चला गया
लेकिन मेरा ये जवाब
मेरे लिये ही एक सवाल छोड़ गया
कि वाकई कब तक हू मै
ये कैसे कहू मैं
क्योकि इसका मेरे पास
नही है कोई
जवाब
हर रोज सुबह उठकर
सोचना कि कैसा होगा मेरा
ये नया आज और दिल मे होता है
थोडा सा
बीते कल का एहसास
साथ ही होती है आने वाले कल से
थोडी सी आस
बस इसी इंतजार मे
चली रही है मेरी सांस
पर ये सवाल बड़ा गहरा है
कि कौन है वो जिसके पास
है इसका जवाब
जिसमे छिपा है मेरे जीवन का राज
अब जब कोई तुमसे पूछे कब तक हो
तो सोचना जरूर कि
कब तक के लिये उसने बांधी है तुम्हारी डोर
ना जाने कब, कंहा किस मोड़ पर
खिचंने वाली है ये डोर
क्योकि कब तक हो तुम
इसका जवाब तो नही है
किसी के पास



1 टिप्पणी:

JIGNASA PATEL ने कहा…

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