गुरुवार, 6 मार्च 2008

तुम ही सत्य हो

हे सृजनकर्ता
हे पालक पोषक
करते भरण तुम सबका
पाकर तुम्हारी
करूण दृष्टि
धूप भी लगती है छाया
हे प्रभु अदभुत है
तेरी माया
होने को तो
हो अदृश्य तुम
पर मन की दृष्टि से
दृष्टि हीनो के समक्ष भी
होते प्रकट तुम
हे माया के
पूज्यदेव
तुम हो सबके आदरणीय
हे सृजनकर्ता
इस सृष्टि के
तुम दृष्टिहीनो की
दृष्टि हो
तुम करूणा की वृष्टि हो
तुम मूको की
वाणी हो
तुम सूखे मरू के
पनघट हो
हे निराकार
हे रूपहीन
इस पूरे मिथ्या जग में
बस तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो

2 टिप्‍पणियां:

Shastri JC Philip ने कहा…

"इस पूरे मिथ्या जग में
बस तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो "

सत्य है!
बहुत बडा सत्य है!
पूर्ण सत्य है!!

सस्नेह

-- शास्त्री

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JIGNASA PATEL ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचना UT...loved one

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