हे सृजनकर्ता
हे पालक पोषक
करते भरण तुम सबका
पाकर तुम्हारी
करूण दृष्टि
धूप भी लगती है छाया
हे प्रभु अदभुत है
तेरी माया
होने को तो
हो अदृश्य तुम
पर मन की दृष्टि से
दृष्टि हीनो के समक्ष भी
होते प्रकट तुम
हे माया के
पूज्यदेव
तुम हो सबके आदरणीय
हे सृजनकर्ता
इस सृष्टि के
तुम दृष्टिहीनो की
दृष्टि हो
तुम करूणा की वृष्टि हो
तुम मूको की
वाणी हो
तुम सूखे मरू के
पनघट हो
हे निराकार
हे रूपहीन
इस पूरे मिथ्या जग में
बस तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
हे पालक पोषक
करते भरण तुम सबका
पाकर तुम्हारी
करूण दृष्टि
धूप भी लगती है छाया
हे प्रभु अदभुत है
तेरी माया
होने को तो
हो अदृश्य तुम
पर मन की दृष्टि से
दृष्टि हीनो के समक्ष भी
होते प्रकट तुम
हे माया के
पूज्यदेव
तुम हो सबके आदरणीय
हे सृजनकर्ता
इस सृष्टि के
तुम दृष्टिहीनो की
दृष्टि हो
तुम करूणा की वृष्टि हो
तुम मूको की
वाणी हो
तुम सूखे मरू के
पनघट हो
हे निराकार
हे रूपहीन
इस पूरे मिथ्या जग में
बस तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
2 टिप्पणियां:
"इस पूरे मिथ्या जग में
बस तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो
तुम ही सत्य हो "
सत्य है!
बहुत बडा सत्य है!
पूर्ण सत्य है!!
सस्नेह
-- शास्त्री
-- हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत में विकास तभी आयगा जब हम एक परिवार के रूप में कार्य करें. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
बहुत ही खूबसूरत रचना UT...loved one
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